Tuesday, June 29, 2010

Don't forget ur duties toward ur country......



आईआईटी यानी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए सबसे रिनाउंड और फेमस प्लेस. लेकिन वर्तमान में इसकी स्थिति काफी बदल गयी है. पहले जो आईआईटी में एडमिशन लेते थे, उनके लिए आगे बढ़ने का रास्ता खुलता था. लेकिन अब सीन काफी बदल गया है, 12वीं करने के बाद हर साइंस स्टूडेंट आईआईटी क्लीयर करना चाहता है. और आईआईटी से पास आउट करने के बाद बस अच्छी नौकरी और अच्छा पैसा कमाना चाहता है. लेकिन मैं समझता हूं कि आईआईटी पैसा कमाने का जरिया नहीं बल्कि ज्ञान अर्जित करने की एक जगह है. जहां से ज्ञान प्राप्त कर अपने देश के लिए काम करना चाहिए. आईआईटी के एक स्टूडेंट पर इंडियन गवर्नमेंट लाखों खर्च करती है, लेकिन गवर्नमेंट को आखिर मिलता क्या है? मुझे बचपन से ही आईआईटी में जाने का काफी मन है. क्योंकि इंडिया में रिसर्च के प्वाइंट ऑफ व्यू से ऐसी कोई संस्था नहीं जहां रिसर्च की पढ़ाई होती है. पर जिस तरह से स्टूडेंट्स रिसर्च को इग्नोर कर बस अपने लिए सोच रहें हैं, और देश को कुछ रिटर्न नहीं कर रहे, वह सच में सोचनीय है. हमारी देश के प्रति भी कुछ रिस्पांसबिलिटी होती है. लेकिन उसका निर्वाह कोई नहीं करता.रिसर्च संबंधी बहुत चीजें यहां पर अवेलेबल नहीं हैं. लेकिन विदेश से ज्ञान लेकर हम उसका यूज अपने देश के लिए तो कर ही सकते हैं.

लापता मनीष इलाहाबाद में मिला


PATNA (28 June) : पिछले चार दिनों से गर्दनीबाग का रहने वाला स्टूडेंट मनीष के लापता होने का मामला सुर्खियों में था. इसे लेकर उसके घरवालों ने अपने ही रिश्तेदारों पर अपहरण का मामला दर्ज कराया था. लेकिन, सोमवार को इलाहाबाद के पास एक ट्रेन में मनीष को छपरा की एक फैमिली ने देखा और पहचान लिया. इसकी सूचना उसके घरवालों को दी. देर रात मनीष को पटना लाया गया. जानकारी के अनुसार देर रात में ही परिजनों ने उसे एसएसपी अमित कुमार जैन से भेंट करवाने उनके आवास पर ले गए. उसके साथ उसके पिता मनीन्द्र शर्मा भी थे. इस मामले में छह लोगों पर एफआईआर भी दर्ज किया गया था, जो मनीष के ही रिश्तेदार हैं.

अनौपचारिक शिक्षा का पर्दाफाश....


बिहार में पूर्वी चंपारण जिले के सामाजिक कार्यकर्ता अमित कुमार ने आरटीआई के जरिए पता लगाया कि राज्य ने केंद्र सरकार द्वारा अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम स्कीम के तहत दी गई धनराशि का पूर्ण उपयोग नहीं किया. दरअसल केंद्र सरकार ने 1990-91 से लेकर 2000-01 तक इस स्कीम के अंतर्गत राज्य सरकार के प्रौढ़ एवं अनौपचारिक शिक्षा विभाग को जो धन उपलब्ध कराया, उसमें 41.99 करोड़ रुपए राज्य सरकार ने खर्च ही नहीं किए. 2008 तक यह धनराशि केंद्र सरकार को वापस भी नहीं की गई.
राज्य सरकार ने अन्य मदों में इस धनराशि को खर्च कर दिया. केंद्र ने भी उस राशि के लिए कोई प्रयास नहीं किए. मई 2008 में अमित कुमार ने पीएम ऑफिस में आरटीआई आवेदन कर अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम स्कीम के तहत बिहार को जारी की गई धनराशि से जुड़े सभी पहलुओं के संबंध में ब्योरा मांगा. उन्होंने यह जानकारी भी चाही कि इस मसले पर नियंत्रक एवं महालेखानिरीक्षक (कैग)ने क्या रिपोर्ट दी और उस पर क्या कार्रवाई हुई? पीएम ऑफिस से उनके आवेदन को ह्यूमन रिसोर्स एंड डेवलपमेंट मिनिस्ट्री को भेज दिया गया.
मिनिस्ट्री ने अगस्त 2008 में अमित कुमार को कैग रिपोर्ट के हवाले से बताया कि बिहार ने स्कीम के तहत जारी की गई 41.99 करोड़ रुपये धनराशि अन्य मदों में खर्च की. उसने यह धनराशि केंद्र सरकार को 2008 तक लौटाई भी नहीं. जबकि केंद्र की अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम स्कीम वित्त वर्ष 2000-01 में खत्म हो गई थी. सितंबर 2009 में ह्यूमन रिसोर्स एंड डेवलपमेंट मिनिस्ट्री ने एक अन्य पत्र लिखकर अमित कुमार को सूचित किया कि बिहार सरकार से 41.99 करोड़ रुपये ब्याज सहित मांगे गए है. यानी कि जो काम कैग रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार को करना चाहिए था, वह एक व्यक्ति के द्वारा आवाज उठाने के बाद किया गया.